श्योपुर: चंबल के बीहड़ों का नाम सुनकर आज भी लोगों की जुबान पर बागी और बंदूक ही आते हैं, जबकि चंबल नदी का नाम है। वो नदी जो श्रापित है। महाभारत में इसका जिक्र है, दरअसल, द्रोपदी ने इस नदी और इसका पानी पीने वालों को श्राप दिया था।
इस श्राप की वजह से इस नदी को दूसरी नदियों की तरह पूजा नहीं गया। न इससे जुड़े कोई त्योहार मनाए गए। इसकी झोली में जो गिरा, वो थे… बहुत सारे घड़ियाल, मगरमच्छ, बीहड़, बागी और बंदूक।
लोग छतों पर जला लेते थे डेड बॉडी
इन्हीं बीहड़ों में 1970-80 के दशक में एक गैंग का आतंक था। गैंग में 32 बागी थे। इस गैंग के मुखिया थे रमेश सिंह सिकरवार। लंबे बाल, रौबदार चेहरा, उन पर ताव देती मूंछें और कसा हुआ शरीर लिए रमेश सिंह सिकरवार ने बीहड़ों में उस समय खूब आतंक मचाया था। हालात ये हो गए थे कि पुलिस वाले भी रमेश सिंह सिकरवार का नाम सुन कांपने लगते थे। उस दौर के लोग बताते हैं कि बागी रमेश सिंह सिकरवार के खौफ से लोग छतों पर डेड बॉडी जला लेते थे।
चाचा की वजह से उठाई बंदूक
बागी रमेश सिंह सिकरवार के चाचा ने उनकी पुश्तैनी जमीन हड़प ली थी। इस जमीन को वापस लेने के लिए रमेश सिंह सिकरवार ने खूब हाथ-पैर जोड़े, लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई। उल्टा उनको बेइज्जत किया गया। जब पुलिस ने भी उनकी नहीं सुनी तो उनके पास बंदूक उठाकर बागी बनने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा।
मुखबिरी की सजा थी मौत
बंदूक उठाने के बाद उन्होंने फिर पीछे मुडकर नहीं देखा। एक के बाद एक मर्डर, डकैती और पकड़ यानी कि किडनैपिंग की। रमेश सिंह सिकरवार गैंग के एक के बाद एक एक्शन से पुलिस के भी पसीने छूटे हुए थे। पुलिस को जब भी कोई मुखबिरी करता, अगले दिन उसकी लाश मिलती थी।